शर्मिंदा शर्मिंदगी / पटरी से नीचे यथा / उतर गयी हो रेल /
मन में है सदभाव भी / मंहगाई की मार से / है कुछ -कुछ टकराव भी /
घर आए मेहमान को / उसे समझ कर देवता / दो आदर, सम्मान दो /
घर आए मेहमान का / करता जो स्वागत नहीं / बच्चा है शैतान का /
ये बजती शहनाईयां /सुनकर लगता डस रहीं /नागिन बन तनहाइयाँ /
धुंध भरी यह धूल है /समझ रहे बदल उसे / यह तो तेरी भूल है /
कहने को जनतंत्र है /जनता शोषित तंत्र भी /उसके संग षण्यंत्र है /
नैतिकता इंसानियत /शिशक रही,हो नग्न अब /नाच रही हैवानियत /
Saturday, June 19, 2010
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एक एक छ्न्द बेहतरीन ...बढ़िया रचना...
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