Saturday, April 9, 2011

श्री सिद्धयोग रामायण

योग विद्या हमारे समाज में चिरकाल से विद्यमान है|अतीत में यह विद्या योगियों-संतों तक सीमित थी|आम आदमी में इसका प्रचार-प्रसार नही था|योगीज़न बस्ती नगर से दूर जंगलों और पहाड़ों में एकांतवास करते थे|विषम परिस्थितियों में भी वो योग क्रियाओं द्वारा सदैव स्वस्थ और निरोगी रहते थे|विभिन्न वनस्पतियों,फलों,जड़ी-बूटीयों द्वारा अल्पाहार कर भी असीम शक्ति अर्जित कर लेते थे|

सर्वप्रथम श्री योगयोगेश्वर प्रभु रामलाल जी महाराज ने आम आदमी में योग प्रचार कर योगिक क्रियाओं एवं जड़ी-बूटीयों के सेवन से उसे स्वस्थ और निरोगी रहने की कला सिखाई|

श्री सिद्धयोग रामायण में प्रभु रामलाल जी महाराज की योग यात्रा और उनके परम शिष्य श्री योगिराज चंद्रमोहन जी महाराज की योगलीलाओं का विस्तार से वर्णन है|

जिसकी रचना मैने राधेश्याम रामायण की शैली में किया है| लगभग १५० पृष्ठों की यह काव्य रचना दो साल की सतत साधना के बाद पूर्ण हो सकी है| योगलीलाओं को दर्शाता यह काव्य अपने में एक अनूठा ग्रंथ है| आगे के कुछ पोस्टों में मैं इस ग्रंथ के कुछ रोचक एवं उपयोगी-प्रेरणादायक प्रसंग आप सब के सम्मुख प्रस्तुत करने का प्रयास करूँगा|


कवि बाबा कानपुरी
(09818217925,09412000280)
ग्राम- सदरपुर,सेक्टर-४५
नोएडा-२०१३०३