Wednesday, February 12, 2014

प्रताप विहार ,गाज़ियाबाद में आयोजित कवि सम्मलेन

प्रताप विहार ,गाज़ियाबाद में दशहरा पर रामलीला समिति की ओर से आयोजित कवि सम्मलेन की कुछ झलकियाँ प्रस्तुत है । कवियों में शायर जमील हापुड़ी जी , वरिष्ठ गीतकार डॉ. रमा सिंह जी, गीतकार चंद्रभानु मिश्र जी ,नेहा आस जी, हास्य कवि बाबा कानपुरी जी, ओज कवि विनय विनम्रजी, ,राम चरण साथी जी, मोहन द्विवेदी जी,कृष्ण कान्त मधुर जी,तुलिका सेठ जी,नरेन्द्र कपूर जी और विनोद पाण्डेय शामिल थे । यतेन्द्र नागर जी के सहयोग से एक बेहतरीन कार्यक्रम हुआ जिसका बेहतरीन सञ्चालन चंद्रभानु मिश्र जी और अध्यक्षता जमील हापुड़ी जी ने किया । सभी को बधाई जिनके शानदार कविता पाठ की सुधी श्रोतागणों को रात के ढाई बजे तक बांधे रखा । । इतना प्यार और आशीर्वाद के लिए मैं अपने सभी मित्रों और शुभचिंतकों का तहे दिल से आभारी हूँ 

योगिनी रामरती ( प्रथम सर्ग , दूसरा अध्याय )

योगिनी रामरती

( प्रथम सर्ग , दूसरा अध्याय )


दोहा--- चन्द दिनों ही ठहरता ,यह नश्वर आनंद |
नष्ट न होता जो कभी ,वह है परमानन्द ||


जा इस में आनंद है, उससे गुना हजार |
अगर तुझे दूँ ,करेगी ,क्या उसको स्वीकार ||


सुनकर प्रभु वाणी रामरती ने उनसे यह फरमाया है ,
यह आत्मानंद बला क्या है, कुछ मेरी समझ न आया है |
मैं करलूँगी स्वीकार , शपथ खा करके मुझको बतलाओ ,
सौगंध पूर्वक प्रभु बोले ,मन में न कोई चिंता लाओ |
करके गंगा स्नान सुबह तुम मेरे पास यहाँ आना ,
जोफल मैं दूंगा चख कर उसका स्वाद हमें फिर बतलाना |
आज्ञान प्रभु की कर शिरोधार्य ,अगले दीन प्रात:वह आई ,
बोले प्रभु ,बैठो आँख मूंद, फिर अपनी प्रभुता दिख लायी |

दोहा--आँख मूंद बैठी रती , बिन अबरे तत्काल |
शक्तिपात प्रभु ने किया, मिटे सभी भ्रमजाल ||
बैठी –बैठी वह रामरती फिर चिर-समाधि में लीन हुई ,
जो मिलती बड़े –बड़े संतों को, मिली उसे वह मती-गती |
प्रभु उसे बिठाकर गए, तीन दिन गए पुन: वापस आये ,
जिस स्थिति में था बैठाया ,उसको उस स्थिति में पाये |
थे व्याकुल पिता, कहें प्रभु से, क्या हुआ इसे कुछ बतलाओ ,
भूखी –प्यासी सुध-बुध खोई, अब इसे होश में फिर लाओ |
बैठी है ध्यान समाधि लगा, सब पाप –ताप मिट जायेंगे ,
जितने हैं बुरे कर्म बंधन , इसके सारे कट जायेंगे |

दोहा –होगा इसका शुद्ध मन , कटेंगे सारे पाप |
पायेगी यह परम गति , मिटेंगे सब संताप ||


Saturday, April 9, 2011

श्री सिद्धयोग रामायण

योग विद्या हमारे समाज में चिरकाल से विद्यमान है|अतीत में यह विद्या योगियों-संतों तक सीमित थी|आम आदमी में इसका प्रचार-प्रसार नही था|योगीज़न बस्ती नगर से दूर जंगलों और पहाड़ों में एकांतवास करते थे|विषम परिस्थितियों में भी वो योग क्रियाओं द्वारा सदैव स्वस्थ और निरोगी रहते थे|विभिन्न वनस्पतियों,फलों,जड़ी-बूटीयों द्वारा अल्पाहार कर भी असीम शक्ति अर्जित कर लेते थे|

सर्वप्रथम श्री योगयोगेश्वर प्रभु रामलाल जी महाराज ने आम आदमी में योग प्रचार कर योगिक क्रियाओं एवं जड़ी-बूटीयों के सेवन से उसे स्वस्थ और निरोगी रहने की कला सिखाई|

श्री सिद्धयोग रामायण में प्रभु रामलाल जी महाराज की योग यात्रा और उनके परम शिष्य श्री योगिराज चंद्रमोहन जी महाराज की योगलीलाओं का विस्तार से वर्णन है|

जिसकी रचना मैने राधेश्याम रामायण की शैली में किया है| लगभग १५० पृष्ठों की यह काव्य रचना दो साल की सतत साधना के बाद पूर्ण हो सकी है| योगलीलाओं को दर्शाता यह काव्य अपने में एक अनूठा ग्रंथ है| आगे के कुछ पोस्टों में मैं इस ग्रंथ के कुछ रोचक एवं उपयोगी-प्रेरणादायक प्रसंग आप सब के सम्मुख प्रस्तुत करने का प्रयास करूँगा|


कवि बाबा कानपुरी
(09818217925,09412000280)
ग्राम- सदरपुर,सेक्टर-४५
नोएडा-२०१३०३

Sunday, June 27, 2010

कैम्पटी मंसूरी में आयोजित राष्ट्रीय बाल-साहित्य सम्मेलन की कुछ झलकियाँ.

सिद्ध रिसर्च सेंटर एवं बाल प्रहरी के संयुक्त तत्वावधान में कैम्पटी मसूरी में आयोजित पांचवें बाल - साहित्य सम्मेलन के अंतर्गत संपन्न राष्ट्रीय बाल सम्मेलन में बतौर मुख्य अतिथि बाबा कानपुरी को पंडित सुमित्रा नंदन साहित्य सम्मान से नवाजा गया समारोह अध्यक्ष श्री पवन गुप्ता वरिष्ठ साहित्यकार डॉक्टर रामनिवास 'मानव',कार्यक्रम के संयोजक एवं बाल प्रहरी के संपादक उदय किरोला ने शाल ओढाकार,सम्मान पत्र एवं स्मृति चिन्ह प्रदानकर सम्मानित किया | इस अवसर पर डॉक्टर शिव नाथ राय, मुंबई महाराष्ट्र से पधारी शायरा डॉक्टर सरताज बानो,दिल्ली से रवि शर्मा , अल्मोड़ा से पवन शर्मा ,ग़ाज़ियाबाद से डॉक्टर मधु भारती ,बहराइच से डॉक्टर अशोक गुलशन को शैलेश मटियानी साहित्य सम्मान से नवाजा गया | इस कार्यक्रम में राजस्थान से डॉक्टर भैरोलाल गर्ग ,उज्जैन से रफीक नागौरी ,मुजफ्फ़र नगर से डॉ. कीर्ति बर्धन ,नोएडा से रामगोपाल वर्मा, डॉक्टर नागेश पाण्डेय ,डॉक्टर ब्रज नंदन वर्मा ,नेहा वैद्य सहित बिहार ,बंगाल , गुजरात , हरियाणा , हिमांचल प्रदेश आदि से प्रतिष्ठित कवि-लेखकों ने भाग लिया |







अब प्रस्तुत है एक कविता,


देते दर्द वही|

व्यर्थ विचारों में
भटका मन
और हुआ सिरदर्द|

काट रहे जड़
डाल रहे हैं
ला उसमें मट्ठा
अपने हुए पराए
क्यों करते हो
मन खट्टा

देते दर्द वही
जो अपने
कहलाते हमदर्द||

बड़की के,
रिश्ते में करके
जिसने दारूण छेद
खड़ा बीच में
वह शुभ चिंतक
जता रहा है खेद

पत्थर दिल
बन कर बहुरुपिया
भरता आहें सर्द||

कुंभलाएँ कपोल
पंखुडियाँ
जैसे पेड़ों की
चुभती पग में
कील सरीखी
छाती मेडों की

जीवन के
मधुबन में छाई
ज्यों अंधड़ की गर्द||

कैम्पटी मंसूरी में आयोजित राष्ट्रीय बाल-साहित्य सम्मेलन की कुछ झलकियाँ.

Saturday, June 19, 2010

दो आदर, सम्मान

शर्मिंदा शर्मिंदगी / पटरी से नीचे यथा / उतर गयी हो रेल /
मन में है सदभाव भी / मंहगाई की मार से / है कुछ -कुछ टकराव भी /
घर आए मेहमान को / उसे समझ कर देवता / दो आदर, सम्मान दो /
घर आए मेहमान का / करता जो स्वागत नहीं / बच्चा है शैतान का /
ये बजती शहनाईयां /सुनकर लगता डस रहीं /नागिन बन तनहाइयाँ /
धुंध भरी यह धूल है /समझ रहे बदल उसे / यह तो तेरी भूल है /
कहने को जनतंत्र है /जनता शोषित तंत्र भी /उसके संग षण्यंत्र है /
नैतिकता इंसानियत /शिशक रही,हो नग्न अब /नाच रही हैवानियत /

Saturday, June 5, 2010

वैभव पाकर मत इतराओ

भोला था मन का सच्चा था,
प्यारा था जब तक बच्चा था
करता था वो बातें सच्ची,
जबतक अकल से वो कच्चा था

बड़ा हुआ करता नादानी ,
गढ़ता अपनी राम कहानी
किये नीर के टुकड़े-टुकड़े,
देख मुझे होती हैरानी

कहता ये केदार का पानी,
लाया 'गया' बिहार का पानी
ये जमजम का यह संगम का,
निर्मल हरिद्वार का पानी

जिसको बड़े जतन से पाला,
बदल रहा पल पल में पाला
आंगन में दिवार उठा दी,
कैसा पड़ा गधे से पाला


बंद भला कब तक ताले में,
रहा कौन किसके पाले में
तन में रक्त एक सा सबके,
भेद न कुछ गोरे काले में


वैभव पाकर मत इतराओ,
दीन-हीन को नहीं सताओ
जिओ और जीने दो सबको,
मिलकर सारे ख़ुशी मनाओ


नहीं साथ मे कुछ भी जाता ,
सब कुछ यही पड़ा रह जाता
वही सुखी रहता जीवन में,
जोकि दुसरो के काम आता