इसके बाद प्रस्तुत है एक छोटी सी रचना
नहीं किसी से डरती चींटी
ठान लिया जो करती चींटी
दाने एक-एक चुन-चुन कर,
खुद अपना घर भरती चींटी
अपने वादे की है पक्की
करके नही मुकरती चींटी
उँची-नीची पगडंडी पर
चलती कभी न गिरती चींटी
खुद से दूना भार उठाकर
चढ़ती कभी उतरती चींटी
जीती है अपनों के खातिर
अपनों पर ही मरती चींटी
अनुशासन में रहकर "बाबा"
संभल-संभल पग धरती चींटी
दीपचंद सुथार जी हो हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteभगवान परशुराम जयंती की हार्दिक बधाई
बढ़िया आयोजन..साहित्य के ऐसे महान सेवक दीपचंद जी को प्रणाम करता हूँ..साथ ही साथ वहाँ मौजूद सभी माननीय सम्मानित जनों को भी प्रणाम....बढ़िया प्रस्तुति...
ReplyDeleteचींटी से मनुष्य को एक प्रेरणा लेनी चाहिए..बहुत बढ़िया रचना...
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