२१ मार्च को शिलांग(मेघालय) में आयोजित ३२वें अखिल भारतीय नागरी लिपि सम्मेलन में प्रस्तुत, देवनागरी लिपि की महिमा समेटे एक कविता.
भाषा बोली के चुन-चुन कर,
तिनके-तिनके, रोड़ा-रोड़ा|
एक नागरी लिपि है, जिसने-
एक सूत्र में सब को जोड़ा||
बंगाली हो याकि बिहारी,
राजस्थानी या मद्रासी,
गुजराती कन्नड़ कश्मीरी,
झारखंड अरुणांचलवासी,
गौहाटी हो या चौपाटी,
चंडीगढ़ हो या अल्मोड़ा|
एक नागरी लिपि है, जिसने-
एक सूत्र में सब को जोड़ा||
कुछ सौदागर जो नफ़रत की
बिछा रहे पग-पग पर गोटी,
भाषाओं की, क्षेत्रवाद के-
सेंक रहे चूल्हे पर रोटी|
छेड़ रहे हैं उसे, खड़ा जो-
छुट्टा बिन लगाम का घोड़ा|
एक नागरी लिपि है, जिसने-
एक सूत्र में सब को जोड़ा||
सरिता जैसा हृदय, समेटे
बहती लेकर नाली-नाले,
सबके लिए खुले दरवाजे,
लटके कहीं न ताली-ताले,
ज्यों गुलाल लेकर गालों पर
मला सभी के थोड़ा-थोड़ा|
एक नागरी लिपि है, जिसने-
एक सूत्र में सब को जोड़ा||
Sunday, March 28, 2010
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कविता बहुत अच्छी लगी।
ReplyDeleteमैने इसका लिंक हिन्दी विकिपिडिया के 'देवनागरी' नामक लेख पर दे दिया है।
nice
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