खादी में गुण बहुत हैं, सदा पहनिए अंग
है सफेद तो क्या छिपे, इसमे सातो रंग
इसमे छिपे सातो रंग, दाम की है यह सस्ती
सभी जगह है मान, नगर हो अथवा बस्ती
बाबा कवि बर्राय सुनो हो भौतिक वादी
बर्बादी से बचो, मॅंगा कर पहनो खादी
खादी के अब बढ़ रहे, दिन-दिन दूने रेट
इसके अंदर छिपे है भारी भरकम पेट
भारी भरकम पेट, देश के काले धंधे
भ्रष्टाचारी चोरबजारी के हथकंडे
बाबा कवि बर्राय, चढ़ी जो तन मे बादी
उसे छिपा लेती है, यह बापू की खादी
कविता के माध्यम से बिल्कुल यथार्थ चित्रण किया आपने...
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